संदेश

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फागण के दोहें… कान्हा चरणा अर्पण करू , होळी रा रंग गुलाल। मनडा भेद दूर करो , मानव मन मलाल।। राधा रंगी गुलाल म्ह , कान्हा हाथां रंग। वृन्दावन की प्रेम गली , गैरया बजावैं चंग।। गौरडी बैठी गोखडे , कर सौलह सिण्गार। साजन बैठ्या प्रदेश मं , ओ रंगा को त्यौहार।। फागण मास रंग रसिया , करै कालजै घाव। औळू हेत मनडा बसे , पिव परदेशी आव।। माथें बैवडों गौरडी , चाली पणघट गेल। पाणी पडछा भर गया , होली रंग रो खेल।। फाग खैले गौरड्यां , गैरया बजावै चंग। घूमर घाले गौरडी , फागण को यो रंग।। लाल-पीळी रंगी गौरड्यां , जोबन को यो रंग। नैन कटारी हिये लागे , फागण म्ह यो चंग।। गाबा-लत्ता तन लाग्या , हिवडे उठी बाठ। पिव मिलन री आसमें , होळी में सब ठाठ।। गली गली उडे गुलाल , हिल मिल खैले फाग। नाचे मन म्ह मोरडी , होळी मीठी राग।। मन रो मेल धूळ ग्यों , फागण रंग मं चोली। घूमर घाले गोरडी , "नरेन्द्र" आज होली।। नरेन्द्र सिंह धन्नावत "टोंक"

बल्ला राजवंश - संक्षिप्त इतिहास

 बल्ला राजवंश - संक्षिप्त इतिहास  बल्ला क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति इतिहास में पूर्ण व सही जानकारी कम लिखित मिलती हैं। प्रस्तुत लेख … क्षत्रिय कुल वंशावली लेखक बडवा भगवत सिंह जी ठिकाना "सिंहपुरा" (भीलवाडा) की लिखी पुस्तक " बल्ला राजवंश का संक्षिप्त इतिहास " के सन्दर्भ पर आधारित हैं। बल्ला राजवंश :--बल्ला क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति राम के पुत्र कुश से हुई हैं। कुश - अतिथि - निषध - नभ - पुण्डरिक - क्षैमधान्व - देवानिक - अनिह - पारियात्र - बल्लस्थल के दो पुत्र वज्रनाभ , शलनाभ हुए। वज्रनाभ अयोध्या के उत्तराधिकारी हुए। बल्लस्थल अपने छोटे पुत्र के साथ अयोध्या से प्रस्थान कर सिन्धु नदी के प्रदेशो को विजय करके बल्ल क्षैत्र स्थापित किया। बल्ल से बल्ल वंश (बल्ला क्षत्रिय) का विकास किया।यह वंश समयानुसार बल्लवल , बलभी , बलश्री , बलहार और वर्तमान में बल्ला वंश के नाम से प्रसिध्द हैं। वद कार्तिक सनी नवमी त्रैता चतुर्थ चरण। बलवंश उत्पन्न भयो-धरयो नाम बल्लस्थल।। बल्ल की मृत्यु के बाद शलनाभ बल्ल क्षैत्र का उत्तराधिकारी बना।शलनाभ ने अपनी माता आरूरी के नाम से आरूर

लेख 1

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तारण थारै हाथ हैं , मारण थारै हाथ। चरणा मैली "वंदना" आ ही म्हारे हाथ।। --कवि राम सिंह सोलंकी मैं सोलंकी वंश की वंशावली लेखन के उद्देश्य से राजसमंद जिले में ठिकाना झीलवाडा हाज़िर हुआ। यहां मेरे पन्द्रह दिन के प्रवास में डाक्टर गोविंद सिंह जी सोलंकी से मुझे स्व0 कवि राम सिंह जी सोलंकी को सच्ची श्रध्दांजलि स्वरूप "कवि राम सिंह सोलंकी स्मृति ग्रंथ" प्राप्त हुआ। यह स्मृति ग्रंथ " प्रताप शोध प्रतिष्ठान " व्दारा प्रकाशित है। कवि श्री राम सिंह जी सोलंकी झीलवाडा ठाकुर साहब मदन सिंह जी अनुज पुत्र थें। आपकी मायड भाषा में काव्य रचना अतुलनीय हैं। आपकी रचनाऔं में " जन नायक प्रताप , ओ भाई प्रताप रो , जोबन म्हारे देश , पन्ना धाय आदि। आपने अन्तस् मन से भाव विभोर काव्य लेखन किया हैं।आपको महाराणा प्रताप साहित्य सम्मान 1999 , राजस्थानी भाषा सेवा सम्मान 2003 , विधा प्रचारिणी सभा (भूपाल नोबल्स संस्थान , उदयपुर) से सम्मान और जौहर स्मृति संस्थान , चित्तोड से प्रतिक चिन्ह प्राप्त कियें। आपके स्मृति ग्रंथ में मुख्यमंत्री , कई संस्थानो , ठिकानो व सम्बन्धियों के श्रध्दा

लेख- 2 क्षत्रिय कुल के वंशावली वाचक मागध वशी: बडवा (राव) जाति …

क्षत्रिय कुल के वंशावली वाचक मागध वशी:  बडवा (राव) जाति …            दोहा :-- पूरब कल्प संवाद यक , शिव प्रथुसन जो कीन। ताही को बरनंत हूँ , सारशास्त्र श्रुति चीन।। यहि छन्द के मांइने , उत्पत्ति प्रगट प्रवान। सार-सार पुनि लिखत हो , जानत सकल जहान।। आदि कौन को प्रगट किये , कौन वंश सूचि होय। याको अबे उदाहरण , प्रगट सुनायहुँ तोय।। चेत करहुं सब जन सुभट , राखहु दिल में गौर। छल पांखड सब छेद्र तज , मतना मचावहुं सौर।। कैसे मागध वंश को , प्रगट किया किन कोय। सो वृतांत सब समुझि के , श्रवण सुनायहुं सोय।। प्रगटे विधि ते प्रथम ही , पुनि पृथु युग परकासु। जनमें मागध सूत जन , जस प्रसंस जग जासु।। पृथु भुव पति प्रगटे तबे , जब सूत मागध (बडवा) जान। है हरि वंश पुराण में , इनहूं को बखान।।          चौपाई :-- पिता यज्ञ जब किन नृपाला। सोम बलि रसमुनिन निकाला।। बाही समय सुनो बुध्दिवाना। मागध सूत जग जाना।। राजा पृथु के यज्ञ में ब्रह्मा आदि ऋषि मुनियों ने मानसिक योग से मागध जी को प्रगट करना और उनको वरदान देना :--       छन्द पद्धरी :-- तब धरे ध्यान उर

लेख - 3 बडवा जाति के गौरव …संत कवि सकतेश

बडवा जाति के गौरव   संत कवि सकतेश इस श्रैणी में दतोब (टोंक) निवासी संत कविवर सगत सिंह जी का नाम बडवा जाति में अमरता को प्राप्त हैं। आपका जन्म विक्रम संवत 1882 के मास कार्तिक शुक्ला व्दितीया सोमवार को हुआ था। आपके पिता श्री का नाम मालम सिंह जी था।         कवि वंश वर्णन नाग शयन निज नाभितें , निरज प्रगट नवीन। अज निरज तें प्रगट भये , कली विचित्रता कीन।।   छपय छन्द ब्रह्म विस्व विस्तार वंश हूं रचे विचक्षण। प्रगटे तिनके पुत्र सूत मागध शुभ लक्षण। वेद चतुर मुख ब्रिन्च शास्त्र खत सूत स्मरपे। वंश अंश बडवार आप लिखी मागध अरपे। प्रार्थना किन प्रिती सहिंत दुर्गा बुध्दी वरदान दिये। बैठार पाट विधि विष्नु शिव त्रिदेवन मिल तिलक किये।।              दोहा बरनत वाही वंश को बहुत ग्रंथ बढ़ी जाय। सुक्षम मति सकतेश कवि उपज्यो तिहिं कुल आय। बहु साखिंन ते बासबर , नगर दतोब निधान। प्रथम पुरखन पाईयो , महिपालन तें मान।। धीर धरमशी देवसी , कणु पाल किम पाल। उधरण गोलुसी गुनी , भूपन के भिडियाल।। खरहत लाला खग बलि , पुरनमल बल नूर। जिन दुरजन दल दमन किय , निडर सिघली नूर।। तिहिं ते देद
वंशावली की उत्पति और महत्व … नरेन्द्र सिंह धन्नावत "टोंक" (राज•) सनातन धर्म में वंशावली लेखन व स्तुति की उत्पति का उल्लेख राजा पृथु से मिलता हैं। श्लोक :-- राजसुया अभिषिक्ताना मागध सब सुध्द दियतस्मा चेव: समुत्पन्नो , निपुणों सूत मागधो " हरिवंश पुराण ! यज्ञ से अभिषिक्त राजाऔं में प्रथम पृथु उत्पन्न हुए।बाद में उसी यज्ञ से सूत , मागध हुयें। " तास्मिन्द्रो महायज्ञ प्रप्ते यज्ञડथ मागध "  उसी यज्ञोपवीत से मागध जी हुयें।( शिव पुराण धर्म संहिता षटपंचादश अध्याय 56) ऐसा ही विष्णु पुराण अं• 1अ•13 श्लोक 52 में लिखा हैं :-- यथा " तस्मिभेव महायज्ञो जज्ञो प्रज्ञो थ मागध: " अर्थात पृथु के यज्ञ से मागध का जन्म हुआ। सूत मागध जी की उत्पति के बाद दोनो को महर्षियों ने महाराज पृथु की स्तुति करने लियें कहा गया। श्लोक :--  " तच्छ त्वाशीस्तु चक्राते यज्ञस्तो सूट मागध " -- शिव पुराण  यह कार्य तुम्हारे अनुकूल है और महाराज पृथु इसके अनुरूप हैं। यह सुन सूत , मागध ने कहा हम अपने कर्मो से देवताऔ तथा ऋषियों को प्रसन्न करते हैं। इन महाराजा